May 11, 2015

एक और मर्दानी


     किसी ट्रैफिक पुलिस द्वारा की गई यह पहली बदतमीज़ी नहीं है। दिल्ली, गुडगाँव और अन्य एन.सी.आर. में तो आये दिन अनेक सतीश चन्द्र मिल जाते हैं। जब मैं इन्हें देखता हूँ तो कई बार अपनी शिकार की टोह में दम साधे, निशाना लगाए सियार से कम नहीं लगते ये लोग। तब मुझे अपने स्कूल के समय अक्सर दुहराते हुए ज्ञान बाँटने वाले अपने कज़न भाई नन्द किशोर की याद आ जाती है। हम अनुभवहीन कल्पना से हमेशा कुछ न कुछ बातें गढ़ा करते थे। मेरे वे भाई जान कहते रहते थे कि पुलिस वालों को ट्रेनिंग में हर बात में तीन गालियाँ देने का अभ्यास करवाया जाता है। - 'साले, फिर बहन पर, फिर माँ पर।' वह चित्र दिमाग में यूँ ही नहीं बैठ गया है, मेरे चाचा जी कहते थे कि 'दरोगा' शब्द को तोड़ने पर बनता है - द, रो, गा। फिर 'थाना' शब्द को तोड़ने पर बनता है - था, ना। 

    मतलब आप मामले में थे या नहीं, पुलिस वालों की तीन गालियाँ सुननी ही हैं और साथ में पैसे 'रो' कर या 'गा' कर, आपको देना ही है। आज वे सारी बातें पुनः प्रत्यक्ष हो गईं। दो सौ रूपये में मामले को रफा-दफा करने का ऑफर देने वाले दिल्ली ट्रैफिक के हेड कॉन्स्टेबल सतीश चन्द्र जी ने दिया। सोचा, महिला है, वर्दी के धौंस पर जेब गरम कर ही देगी। पहले बत्ती जम्प पर चार्ज लगाया। महिला चार्ज देने को तैयार तो थी, मगर उसे रिसीविंग चाहिए था। जो कही से गलत नहीं है। महिला रमनजीत कौर की स्कूटी पर लात मारकर कॉन्स्टेबल साहब ने गिरा दिया। कामकाजी महिलाएँ बोल्ड होती हैं, यह तो सभी मानते हैं, मगर आज एक हाउस वाइफ रमनजीत ने भी अपनी बोलडनेस दिखाई। कॉन्स्टेबल महोदय की बाइक पर पत्थर दे मारा। सतीश चन्द्र साहब आग बबूला हो गए। महिला की कमर पर पत्थर दे मारा। ये सारा दृश्य एक यात्री अपने कैमरे में बड़ी ही चतुराई से कैद कर रहा था, जो टीवी चैनल पर दिखाया जा रहा है। 
     डिजिटल लाइफ और साइबर वर्ल्ड की सिर्फ खामियों को गिनने वाले आज उसकी एक और सकारात्मक पहलू देख उदास हुए होंगे। खैर, बात ये है कि भ्रष्टाचार का विरोध करना और पत्थर खाना उचित ही समझा जाये। मधुर परिणाम पाने के लिए पत्थर तो खाना ही पड़ेगा। हमने भी असंख्य बार पत्थर, डंडे और ढेला आदि मार-मार कर मीठे फल पाये हैं। खूब झरबेर झारे हैं। खूब आम टपकाए हैं। तो क्या चोट की डर से घूस को प्रश्रय देना चाहिए? या फिर चोट खा कर भी समाज को सीख देनी चाहिए?
     मैंने टीवी स्क्रीन पर अमरजीत कौर की बेटी को देखा। दर्प से दीप्त मस्तक मानो कह रहा हो, आज मदर्स डे पर मेरी माँ ने (फिर एक माँ ने) हर माताओं के लिए फिर से एक नज़ीर प्रस्तुत किया है। अपनी बेटियों के लिए अमरजीत कौर एक मर्दानी हैं। अब उनकी बेटियाँ भी कभी मुसीबत में पड़ीं तो निडरता से सामना करने में सक्षम रहेंगी। 
   दिल्ली पुलिस ने भी अपनी बहादूरी दिखाई है। अपने ही कुनबे के किसी सदस्य की गलतियों को स्वीकार कर उसके विरुद्ध कार्यवाही करना बहादूरी ही है। सच ही, वह दिन दूर नहीं की उस मर्दानी माँ अमरजीत कौर की निडरता तथा पुलिस विभाग की न्यायप्रिय बहादुरी के कारण मैं अपने कज़न और अपने चाचा जी के कहावतों को झूठा सिद्ध कर दूँगा और हम निडरता से अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन करेंगे। 
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                                                                                        - केशव मोहन पाण्डेय 

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