May 1, 2015

मैं मजदूर हूँ

    मैं मजदूर हूँ। हाँफता, काँपता मजदूर। खुशियाँ बनाता, खुशियों की दुनिया बसाता मजदूर। मैं मजदूर हूँ। मेहनतकश मजदूर। आलस्य से मेरा कोई वास्ता नहीं। काम से भी कभी नफरत नहीं। मैं दिन रात मेहनत करने के लिए बना हूँ। मैं अनवरत मेहनत करता हूँ। मैं कल-कारखाने बनाता हूँ। मैं सुई से लेकर बड़ी-बड़ी मशीनें बनाता हूँ। उन्हें चलाता भी मैं ही हूँ। पछताता भी मैं ही हूँ। फिर से मेहनत करता हूँ। मैं जिन्दगी के साथ होड़ लगाये चलता हूँ। कई बार तो मैंने हरा भी दिया है जिंदगी को। सरिया में बिध कर भी मैं जी उठा हूँ। 
    मैं मजदूर हूँ। वह मजदूर, जो मौसम की हर मार सहता है। मेरा शरीर पसीने से लतपथ रहता है। केवल बंडी-बनियान से पुस को झेलता है। निरन्तर वर्षा में भिंगते हुए भी मैं अपने काम से मुँह नहीं मोड़ता। भले पेट में रोटी नहीं गया हो तो भी चेहरे पर चमक होती है। अधर पर अक्षय मुस्कान रहती है। आँखों में मंजिल। जब मैं अपनी जिम्मेदारियों को पूरा कर लेता हूँ, तब तो मैं ही विश्व-विजेता होता हूँ।
    मैं मजदूर हूँ। सपनों को पालत मजदूर। सत्य के धरातल पर जी रहा मजदूर। फ्रांस की क्रांति से अमर हो चुका मजदूर। पर आज भी असहाय हूँ। आज भी असफल माना जाता हूँ। आज भी अकिंचन कहा जाता हूँ। तो क्या? मैं जिंदगियाँ देता हूँ। सड़क, बाजार, घर, दुकान, मंडी, कल-कारखाने और खेतों में भी मेरी ही मजदूरी है। मैं अपने दम पर संसार को पालता हूँ। जिंदगी मेरे साथ है। मेहनत मेरे साथ है। काम ही मेरी संपत्ति है। पसीना ही मेरा जागीर। भले मैं आँसू बहाता हूँ, मगर दूसरे की आँखों में आँसू नहीं देख सकता।
    चाहे देश कोई भी हो, मेरी कहानी एक ही जैसी है। भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था में भी। विश्व के किसी कोने में भी। मैं तो बस अपने मेहनत पर विश्वास करता हूँ। मेहनत के बल पर जी रहा हूँ। मेरी प्राण-शक्ति भी मेहनत ही है। दूसरे पर क्या भरोसा? यहाँ तो सरकारें आती हैं और जाती हैं, मजदूरी तो मेरी ही रहती है। मेरे एक बार के निर्णय पर पाँच साल तक मुझ पर ही शासन की व्यवस्था की व्यवस्था भी तो मैंने ही की है। यहाँ तो लूट की ऐसी व्यवस्था है कि जो जिस स्थिति में हैं, अपना हाथ साफ कर ही लेना चाहता है। चाहे बात काले धन का हो या सार्वजनिक शौचालयों से लोटे को उठा ले जाने का। यह तो देश की विडम्बना है कि जिस किसान का उगाया हुआ अन्न खाकर लोग उसपर नीतियाँ बनाते हैं, वहीं किसान आत्महत्या करने पर विवश हो जाता है। मजदूर जिन कल कारखानों को तैयार करता है, जिन्हें चलाता है, उसी कारण मजदूर की जिन्दगी बोझ बन जाती है। मैं तो जिन्दगी भर बोझ ढोता रहता हूँ तो मेरी जिन्दगी खुशहाल क्यों नहीं? इन्हीं प्रश्नों के साथ दुनिया में मेहनत को तवज्जो देने वाले सभी मजदूरों को आज के लिए शुभकामना।
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 - केशव मोहन पाण्डेय

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