Sep 28, 2014

असीम शुभकामना


    सन 2005 तक मैं अध्यापन के साथ ही अपने लिए एक नए कार्यक्षेत्र का चुनाव कर चुका था। मैंने हिंदी टेली फिल्म ‘औलाद’, भोजपुरी अलबम ‘तोहसे जुड़ल पिरितिया के डोर’ आदि का लेखन-निर्देशन करने के बाद 2007 में एक विडियो फिल्म ‘कब आई डोलिया कहार’ का भी लेखन-निर्देशन किया। मैं आर्थिक रूप से ज़ीरो होने के क्रम में पूर्णतः हो गया। खैर, असफलता के कारण उन दिनों को मैं कभी भी प्रसन्नता के साथ याद नहीं करता। उनकी काली छाया आज भी मेरे जीवन पर विद्यमान है। गाहे-बेगाहे मुझे कष्ट देती रहती है। मेरे अंतर को आहत करती रहती है। 

    मुझे अपने उन कुकृत्यों के किसी बात पर अगर कभी गर्व होता है तो सिर्फ इस बात का कि मैंने अपने क्षेत्र में ही, अपने क्षेत्र के छोटे-बड़े संभावित कलाकारों के साथ ही काम किया। उस समय मेरे पास कोई भी फिल्म इंडस्ट्री का चर्चित चेहरा नहीं था। असफलता के कारणों में एक ह भी है। जो थे, मेरे अपने थे। अपने सखा-संबंधी, अपने परिचित-परिवार। मज़ा आता था। मज़ा इसलिए कि सब मिलकर काम करते थे। आदर-सम्मान ही पारिश्रमिक होता था। समय की सारंगी ऐसी बजी कि कई के मन में सोया कलाकार जाग गया। अब तो मेरे गृह-नगर में भी फिल्मांकन होने लगा। अभिनेता बन गए। 
    आज फेसबुक पर एक पोस्ट देखा। देखा तो इस संयोग पर गर्व भी हुआ और अपने उस पहले किए गए कृत्य पर पहली बार प्रसन्नता हुई। बात यह कि मनोज द्विवेदी एक अनुभवी कलाकार हैं। वे मेरे गृह-जनपद के होने के साथ ही मेरे अच्छे मित्र हैं। ‘कब आई डोलिया कहार’ के समय तक उनकी कई फिल्मों ने भरपूर लोकप्रियता प्राप्त कर लिया था। ‘कब आई डोलिया कहार’ में वे पहली बाद मुख्य भूमिका निभा रहे थे। उस फिल्म में मेरे एक दूसरे मित्र अमित शर्मा ने द्वितीय अभिनेता की भूमिका का निर्वहन किा था। अमित आज भी हमेशा प्रयत्न कर रहे हैं और वे भी कई फिल्मों में आ चुके हैं। 
    मेरे दोनों अभिनेता मित्र ‘मनोज द्विवेदी’ और ‘अमित शर्मा’ ने अपने परिश्रम के हर एक पहलू से समय-समय पर मुझे अवगत कराया है। ये सफल होने के बाद भी अपना पैर ज़मीन पर ही रखते हैं। मुझे भी मान देते रहते हैं। फिल्मांकन के बाद अमित दिल्ली आए तो दिनेश लाल यादव और खेसारी लाल यादव के साथ अभिनय करने के अपने अनुभव को बड़ी ही प्रसन्नता से तो बताते ही रहे, उन्होने अपनी आने वाली फिल्म ‘हथकड़ी’ के कई फोटो भी मुझे दिखाए और पोस्टर आने पर प्रेषित भी किए। यही हाल मेरे मित्र मनोज द्विवेदी की भी रही। ह्वाट्स एप्प पर उनकी फिल्मों के फिल्मांकन का चित्र हमेशा आता रहता है। उन्होंने अपनी आने वाली फिल्म ‘लहू पुकारेला’ का समय-समय पर मुझसे खूब जिक्र किया है।
 

    आज फेसबुक का पोस्ट यह था कि ‘लहू पुकारेला आौर ‘हथकड़ी’ दुर्गा पूजा के शुभ अवसर पर एक ही दिन, एक ही साथ रिलीज होने जा रही हैं। दोनों का पोस्टर दिया हुआ था। मुझे अपने टीम की फिर याद आ गई। याद आई तो यादों के उन झरोखों को स्वच्छ करते हुए अपने फिल्म का पोस्टर तो निकाला ही। आज फिल्म इंडस्ट्री से मेरा नाता नहीं हैं। हाँ, कभी-कभी गीत, संवाद या कथा लेखन में लग जाता हूँ, मगर पहली बार ऐसा लगा कि मैं सफल हो गया। दोनों को बधाई दिया और लेखनी को रोक नहीं पाया। दोनों फिल्मों को अपार सफलता मिले। 

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