Mar 15, 2013


                                                                     संस्कार (लघुकथा)

       नंदिता एक छोटे से नगर से आयी हुई लड़की है। जब मेरी नज़र उस पर गई तो सोचने लगा कि 'इनके माँ-बाप इन्हें शहर क्यों भेजते हैं? यहाँ आते ही लड़कियाँ कैसी हो जाती है? - - एकदम निर्बंध! तब इनके लिए सभ्यता-संस्कार का मायने ही बदल जाता है।'
       अब नंदिता को ही देखिए! - - वहाँ के एक प्रतिष्ठित अध्यापक की बेटी। जो पढ़ने के अतिरिक्त घर से शायद ही कभी निकलती हो। - -यहाँ शहर में आ कर बी-टेक कर रही है। लड़कों के हाफ-पैंट से भी छोटा उसका कैज़ुअल-ड्रेस है। कॉलेज से निकलते ही शाम तक दोस्तों के साथ पार्क-मॉल और न जाने कहाँ-कहाँ घूमना, कभी-कभी बिअर का एक-दो पैग ले लेना तो अब उसकी जीवन-शैली हो गई है। अब वह नंदी के नाम से पुकारी जाती है। 
        नंदिता के विषय में एक बात जानकर तो मैं दंग रह गया। - - - उसके एक दोस्त का एक्सीडेंट हो गया था। चार दिन से हॉस्पिटल में एडमिट था। उसके मम्मी-पापा ही हॉस्पिटल में रहते थे। दूसरा कोई था नहीं। जब नंदिता को पता चला तो रात-भर हॉस्पिटल में रहने के लिए जा रही थी। सोचा उसके मम्मी-पापा घर जाकर थोड़ा आराम कर लेंगे। नंदिता ने अपने कई दोस्तों से भी कहा। कोई तैयार नहीं हुआ। - 'फिफ्थ सेम का एग्जाम आ रहा है। माँ-बाप यहाँ पढ़ने ने लिए भेजते है। यार हममे इतनी तो संस्कार है हीं कि अपने माँ-बाप के सपनों का ख्याल रखें! - - हम यहाँ रिश्तेदारी निभाने थोड़े ही आये हैं!'
       नंदिता ने फिर किसी से कुछ नहीं कहा। अपना कुछ नोट्स अपने पर्स में रखी और हॉस्पिटल के लिए ऑटो पकड़ ली।
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                                                                                                                           - केशव मोहन पाण्डेय 
  

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