Feb 4, 2013


गीत 
असहज मन को 
सहज करे तू 
गढ़ के बारम्बार!!
कैसे भूलूँ तेरा प्यार?

उत्सव-पर्व का चाह न कोई,
अब नूतन उत्साह न कोई, 
चाह रहा मन
बार-बार अब 
तेरा ही अभिसार!!

भटक रहा था तृषित हरिण मन, 
जयश्री-हीन व्यथित यह जीवन,
शून्य हृदय की 
नव-कलिका तुम 
खिली हुई कचनार!!

दिखे डगर ना खुले पलक से, 
खिल जाता मन एक झलक से, 
तमस क्षेत्र मैं 
अखिल धरा का,
तुम उज्ज्वल संसार!!

कर्म राह में हार का राही,
बन सका ना सफल सिपाही, 
विपद-ग्रन्थ का 
सकल पृष्ठ मैं,
तुम हो सुख का सार!!

डर बैठा मन जीवन-राह का, 
शव बिछता गया मेरी चाह का, 
जीवन-सिन्धु का 
मैं अकुशल माझी,
तुम नौका पतवार!!

तेरे लिए अब क्या करना चिंतन? 
तन-मन-धन जीवन सब अर्पण! 
 चित्र हृदय में 
और न कोई,
बस तेरा अधिकार।।
                                                          - केशव मोहन पाण्डेय(13.3.2003)

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