Jan 21, 2013


                            ग़ज़ल 
मेरी किस्मत की लाचारी का सहारा बन जा।
मेरा कोई नहीं प्यारा, तू प्यारा बन जा।।

गर दिया दर्द मैं, कुबूल है गुस्ताखी वो मुझे,
ना कहो, जग छोड़ के आवारा बन जा।।

रुसवाइयों का दौर, बड़ी लम्बी सज़ा है दोस्त,
नज़रों को बुलंद कर लो, नज़ारा बन जा।।

मिल जाती है राह में कभी ऐसी मंजिल भी,
कहते, छोड़ गाँव, शहर सारा बन जा।।

तमन्ना है तेरे पहलू में सर रख के सोऊँ,
इनायत कर के ओ अफ़साना दुबारा बन जा।।
                                   - केशव मोहन पाण्डेय 

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