Jan 24, 2013


                ग़ज़ल (भोजपुरी)
साँच के आँच के ई असर हो गइल।
बात अइसन खुलल कि ज़हर हो गइल।।

इश्क इबादत हवे, सबसे सुनले रहीं,
हमहूँ कइनी त काहें कहर हो गइल।।

रात बाटे अन्हरिया कहत रहले ऊ,
देखते-देखते दुपहर हो गइल।।

सोचनी, बहियाँ में भर के जिनगी जीएब,
प्यार के हार फेरु मगर हो गइल।।

कबो एक पल रहें ना हमरा से अलग,
आज लउकें ना, कवन कसर हो गइल।।

तहके पुतली बना के पलक में रखेब,
एही सपना प केतना ग़दर हो गइल।।

द्रोपदी के सभे आपन रहलें मौन तब,
आज ऊहे कथा दर-ब-दर हो गइल।।
                                  - केशव मोहन पाण्डेय 

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