Jan 21, 2013

माँ बहुत बड़ी होती है

इस बड़े शहर में
कितना ओछापन है
अब पता चलता है
रहकर तुमसे दूर
छोटी - छोटी इच्छाओं को
पूरा न कर पाने में
हो कर मजबूर
कितनी बार तो छलता हूँ
अपने आप को
कि अपने पैरों पर खड़ा हो गया हूँ
अब मै बड़ा हो गया हूँ
तब सोचता -
मैं कितना ओछा हूँ
तेरे सामने अभी बहुत छोटा हूँ
तू अभिलाषाओं की पूजा है
शिवाले की घंटी
गंगा की धारा
मेरे होने का निमित्त भी तू
तुझसे ही सारा पसारा
उम्र ढलने से
तू भले खड़ी नहीं होती है
फिर भी माँ बहुत बड़ी होती है
- केशव मोहन पाण्डेय




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