Sep 8, 2010

लक्ष्य

लक्ष्य
तुम मुझसे प्यार करती हो तो
मन और जीवन से पहले
कर दो तन समर्पित,
तभी खड़ा होगा -
अपने प्रीति का स्वप्नलोक
तभी पकड़ा जायेगा
कल्पनाओं का आकाश
बहेगी भीतर
अनुभूतिओं की देवापगा ,
खेलेंगे हम
उमंगों के बतास से !
नहीं तो तेरी प्रीति
कोरी भावना है -
और मुझे भाव नहीं भाते,
वे रोड़ा हैं -
लक्ष्य के रास्ते का ,
और तुम मेरा लक्ष्य नहीं हो सकती,
क्योंकि -
यथार्थ है परिवर्तन
आज बदल गयी है
परिभाषा प्यार की
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1 comment:

  1. You have the gift of using language in a way that retains its freshness and even its rawness - the impact is astonishing, even shocking, in all the poems posted here. These are writings of a very talented poet who can develop and grow into a great poet. Good luck!
    Mansoor

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