Feb 23, 2010

हिंदी कविता

संघर्षों का विष
दृग में स्वप्न अनोखे कल का
अनुभूति तेरे बल का
कल की बातें थीं ।
उम्मीद के लौ की ज्योति
उत्साहों के पथ की गति
कल की बातें थीं।
छूछे आदर्शों का मकड़जाल
कर्तव्यों का महाव्याल
हर कदम पर
हर पथ पर
मुँह बाये खड़ा है।
पहले नहीं समझा था कि -
टेढ़े जीवन में
सीधे लोगों के लिए
असफलताएँ छोटीं
और संघर्ष ही बड़ा है।
चल ताल ठोंक कर -
मेरा साथ तो दे
विश्वास न सही
केवल हाथ तो दे,
इस अपनों की बनावटी दुनिया में
कोई अपना तो है-
इस उम्मीद में जी लूँगा,
नहीं मिली मंजील तो क्या
सुख-दुःख की सीढ़ी चढ़ता
संघर्षों का विष पी लूँगा।
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- केशव मोहन पाण्डेय
09015037692

1 comment:

  1. mere hilate hathon ko sahara mil jaye.
    aap sa koi dost pyara mil jaye!

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